रविवार, 9 फ़रवरी 2014

सिगरा मंडी का एक तरकारी विक्रेता

बनारस में साजन सिनेमा चौराहे पर नवनिर्मित फव्वारे से थोड़ा आगे सिगरा तरकारी मंडी की ओर बढ़ने पर बायीं ओर तमाम पणियों, गाली गलौज करते चिल्लाते दलालों, लोगों, पशुओं और गन्दगी की भीड़ के बीच भूमि पर छोटी सी टोकरी में तरकारी रख कर बेचता यह व्यक्ति मुझे जँचता है।


साधारण वस्त्र, सँवारे केश और हल्की बढ़ी दाढ़ी लिये इस मानुष का उत्साह नख नख से फूटता है। करीने से सजी सब्जियों में कोई असुन्दर नहीं होतीं और उनकी सजावट में एक ज्यामितीय प्रारूप दिखता है। 

इनकी तरकारियों के भाव में सामने वाले को देख कर उतार चढ़ाव होता रहता है। ग्राहकों की कमाल की परख है इन्हें और उन पर पकड़ भी। किस को क्या दिखाना है, कैसे घेरना है और कैसे भाग कर माँग पूरी करनी है, सब का कौशल इनमें है। निराशा का प्रदर्शन करते हुये कभी कभी मैंने असम्भव माँगें भी की हैं। उस समय फुर्ती के साथ कहीं और से ले आकर भी इस व्यक्ति ने पूरी की है। 
  
इनके स्वभाव में एक खास तरह का आक्रामक माधुर्य है जिसके कारण कोई भी ग्राहक आ जाने पर खाली हाथ नहीं जाता। इनके यहाँ रुकने वाले भी खास ही होते हैं जिन्हें मैं मन ही मन ‘गुण ग्राहक’ कहता हूँ। गुण ग्राहक वह होता है जो भाव ताव में उन्नीस बीस की परवाह न करते हुये ‘सम्पूर्ण क्रय अनुभव’ पर केन्द्रित रहता हो। उसके लिये पण से ले कर थाली तक तरकारी के आने की पूरी प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है ताकि स्वाद का सम्पूर्ण परिपाक हो। गुण ग्राहक रुपये व्यय कर आनन्द का अनुभव करता है और इस हेतु वह आनन्ददायी विक्रेता पा ही लेता है। आप के आसपास भी ऐसे आनन्ददायी विक्रेता हों तो अवश्य बताइये!

12 टिप्‍पणियां:

  1. अतीत में तो हम खुद ही ऐसे विक्रेता(सेवा प्रदाता) रहे हैं :) आत्मश्लाघा मत समझियेगा, कई ’गुणग्राहक’ हमारे अवकाश पर होने की स्थिति में खुद ही बैरंग लौट जाते थे।

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  2. हम तो जो भी
    बेचना चाहें
    उसका प्रोडक्शन
    ही बंद हो जायेगा
    जब माल दुकान
    पर ही सड़ जायेगा
    तो कम्पनी वाला
    पागल जो क्या है
    जो दुबारा बनायेगा :D

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  3. यहाँ हर जगह मॉल से ही सब्जियां लेनी होती हैं और शोपिंग मॉल में ऐसे विक्रेता नहीं मिलते ..ऐसी सुविधाओं से हम वंचित हैं .

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  4. जि‍नसे रोज़ाना का वास्‍ता हो जाता है वे मि‍लनसार तो हो ही जाते हैं मूल्‍य भी वाजि‍व रहता है

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  5. ग्राहक को समझने के लिये तो प्रबन्धन विद्यालयों में शाखायें खुली हैं।

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  6. भीड़-भाड़ भरी सड़क पर अपनी रोजी की जद्दोजहद करते ये साधारण से दिखने वाले लोग अपने भीतर कुछ असाधारण भी समेटे होते हैं। ब्लॉग लिखने के शुरुआती दिनों में मैंने भी एक ठेले वाले पर निगाह टिकाई थी।
    http://www.satyarthmitra.com/2008/04/blog-post.html

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  7. वाकई असली ग्राहक को समझना (जो कोई आसान बात नहीं है) कोई इन्हीं से सीखे।

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  8. हैं कुछ, लेकिन उनकी तस्‍वीर ले पाना टेढ़ी खीर है।

    एक तो फल वाला ही है मूळिया...
    एक हींग वाला था अफगानी,
    एक छत्‍ते वाले (बर्फ का गोला) वाले हरिरामजी,
    एक दूध मलाई वाले भईय्यन,
    एक....

    बहुत लंबी लिस्‍ट है... :)

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  9. बनारस कि बात ही निराली है खाश तौर से सिगरा की..
    सिगरा पर लिखी मेरी पोस्ट -
    http://pravingullak.blogspot.in/2013/04/blog-post.html

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