रविवार, 9 दिसंबर 2012

हो गई बोहनी!

मझली का परिवार: 
बाप पेंटर, बड़का डरइवर 
[पियक्कड़]
   
महतारी धोवे चुक्कड़।

छोटका बउका

बड़की छुट्टा

छोटकी खेले गुट्टा।

मझली: 
चौदह की उमर। गाढ़ा साँवला रंग।
ऊँच दाँत। नीच माथ। लम्बे केश।
[
कामवालीबनने की टरेनिंग में थी।]
थी इसलिये कि अब है नहीं। 
झुकने वाला काम पसन्द नहीं।

कथा: 
बाप से ज़िद
गुमटी दो आन,
कमायेंगे हम
, खोलेंगे दुकान।  
बाप इहाँ कौन आयेगा
गुटका बीड़ी कीनने

बइठ घर में!
 

दाल जल गई। बटुली लुढ़क गई।
 
आटे में किरासन। तरकारी पर भासन।
 
महतारी पिट गई
, आधे उघारे भग गई।
घर में उपास करुआसन।

एक दिन छोड़
 बड़के ने किया दंगा। 
बउका घुसा नाली में नंगा।
 
आधी रोटी बह गई।
 
बड़की उतान
, छोटकी मरखान। 
बाप की लग गई!
समर्पण। 

गुमटी आ गई।
 
लग गई बीड़ी
,
गुटके की सीढ़ी
,
माचिस का मचान

फोंफी का सामान
,
सिगरेट का लत्ता

लेकिन ... गाहक नपत्ता।

एक दिन बीता
दूजे की दुपहरिया 
मझली और करिया!
न बोहनी न बट्टा

छोटकी खेले गुट्टा।

तो जब सूरज मुस्कान था
दूर रँगा डुबान था
,
पेंटर को सूझी माया

दिमाग दौड़ाया -
 
चल मझली तुम्हें पेंट करा लाऊँ।
 

विश्वास करो मन से।
 
एक दिन की मजूरी,

निकली दन्न से। 
मझली गई पार्लर।
 
केश हुये झालर।
 
उठान की पहचान।
 
नैनों की मुस्कान।
 
जुबान का रस।
 
देह का रामरस।
मझली ने जाना – 
करिया हो कनिया
 
तो भी है धनिया!
 
दुकान सज गई।
मझली बझ गई।
 

स्पीड जाती बाइक,

रुक गई। 
वापस मुड़ गई।
 
सिगरेट एक बिक गई

मझली थोड़ा झुक गई।
 
लहरी मुस्कान,
 
जली तीली दुकान।
 
नजर छिहिल गई।
 

बाप मारे कोहनी
हो गई बोहनी!     

8 टिप्‍पणियां:

  1. बाप रे ....

    देशज शब्दों के मायाजाल चित्र संजीव हो उठे. वाह

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  2. देसज शब्दों के साथ समाज का यह रूप चित्रण... अद्भुतलेकिन असहज

    जवाब देंहटाएं

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