बुधवार, 21 नवंबर 2012

तुम आशा विश्वास हमारे


नास्तिक हो तो मन्दिर क्यों आये मनु?” 
“ऑक्सीजन के साथ संघनित आशायें पीने, वही आशायें जिनके कारण कभी मूल कणों ने जीवन को जन्म दिया।“ 
“जीवन अजन्मा है मनु! आरती के आगे हाथ क्यों जोड़ते हो?” 
“प्रकाश और आँच को हथेलियों में विश्राम देता हूँ, सँजोता हूँ।“

“सिर क्यों नवाते हो?” 
“और कोई अवसर है क्या जब तुम्हारे आगे झुक पाऊँ? तुम्हें तो पता है कि कैसा संसार हमने रच रखा है उर्मी!“  
“तिलक क्यों लगवाते हो?” 
“उस समय तुम्हारे और मेरे स्पर्श के बीच वह आर्द्रता होती है जिसके कारण कभी धरती ठंडी हुई।“

“प्रसाद क्यों ग्रहण करते हो?”
“प्रसन्नता और स्वाद का ऐसा अनूठा संगम और कहाँ मिलता है उर्मी!”
“तुम नास्तिक नहीं, वज्र आस्तिक हो बुद्धू!” 
“जो भी हूँ तब तक हूँ जब तक तुम हो।“
“और मेरे बाद?”
“मैं नहीं रहूँगा।“
You are hopeless!” 
यहाँ बड़ी आस से आता हूँ।“
That is why I said – you are hopeless.”
“जो है सो है।“ 

7 टिप्‍पणियां:

  1. चंद पंक्तियाँ /गहन भाव/एक मुलाकात या एक कहानी... इस में ख़ामोशी अधिक गूंज रही है!

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  2. उत्तर में छिपा है, प्रश्न कुरदने का भाव..

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  3. बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

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