रविवार, 27 फ़रवरी 2011

दिल, नागिन और मूँछें

यह ऐसा आलेख है जिसके लिये टिप्पणी न करने की शपथ भी तोड़ी जा सकती है। परिवेश की बेहूदगियों पर झुँझलाते हुये 'आर्ट ऑफ लिविंग' में सिमटने या 'पॉलिटिकली करेक्ट' हो कर बेहूदगियों का समर्थन करने से अच्छा है कि हो हल्ले में दबा दिये गये, अनदेखे कर दिये गये और किये जा रहे तथ्यों पर लिखा जाय। 
इसे पढ़ते हुये जाने कितनी 'नर्कगामी' सचाइयाँ स्वर्ग की ओर कुलाचें मारने लगती हैं। मजे की बात यह है कि रम्यता भी बनी रहती है। ब्लॉगरी साहित्य को समृद्ध कर रही है, यह आलेख प्रमाण है। 
अधिक नहीं कहूँगा, स्वयं पढ़ कर देखिये: