गुरुवार, 20 जनवरी 2011

लेंठड़े का गाली विमर्श - 1

आज सुबह लेंठड़े से मुलाकात हुई। वातानुकूलित लाइब्रेरी से बाहर आ कर सर्दी में काँप रहा था। पंजे कड़कड़ा रहा था। वह जगदीश्वर चतुर्वेदी, मृणाल पाण्डेय, अरविन्द मिश्रादि के गाली विषयक लेख पढ़ कर  विमर्शी मुद्रा में था। दुखी भी था कि एक ओर वादी लोग 'भोजपुरी के पथभ्रष्टक दुअर्थी विशारद बलेसर 'के महिमा गायन में लगे हैं तो दूसरी  ओर गालियों से परहेज करने की सलाह दे रहे हैं। गुड़ खाओ और गुलगुल्ले से .... हाँ कुछ वैसा ही जैसे कृष्ण करें तो लीला हम करें तो व्यभिचार! 
लंठ केंकड़े के साथ विमर्श क्या होता, वह अपनी ही हाँकता चला गया। सोचा कि साझा कर दूँ। आप इसे पढ़ें तो अपने पूर्वग्रहों को ताख पर रख कर चुभलाते हुए पढ़ें ताकि रस परिपाक हो सके। पहले बताना ठीक होता है ताकि बाद में यह कह कर कि बताया नहीं, आप _रियाने न लगें। मैं अज्ञानी मन्दमति हूँ, बस उसकी बात कह रहा हूँ। मुझे वाकई इस विषय में कुछ नहीं पता। हाँ, गालियाँ दे लेता हूँ।  
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आम समझ में गाली का अर्थ यौनांगों और यौन सम्बन्धों से सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी उस अभिव्यक्ति से लिया जाता है जो लक्षित व्यक्ति की प्रतिष्ठा, आत्मविश्वास या आत्मबल पर सीधा असभ्य सा प्रहार करती है। यह प्रहार लैंगिक, सामाजिक आदि पक्षों के अतिसम्वेदनशील मार्मिक बिन्दुओं पर होता है, परिणामत: शारीरिक प्रहार से भी भयानक हो जाता है।
पुरुष प्रधान समाज में स्त्री के जननी स्वरूप का बहुत आदर है। स्त्री प्रधान समाज में भी होता लेकिन        शायद उतना नहीं होता। उस स्थिति में पुरुष के जनक स्वरूप का अधिक आदर होता। यहाँ ‘प्रधान’ से ‘शासित’ का भी अर्थ समझें। समाज का नारी अर्धांश कहीं पुरुष के स्वामित्त्व के दम्भ से जुड़ता है और घर परिवार के नारी सम्बन्ध जैसे माँ, पत्नी, बहन, बेटी आदि अकथित सम्पत्ति की श्रेणी में आ जाते हैं। किसी को यदि अपने प्रतिद्वन्द्वी को चोट पहुँचानी है तो उसकी एक विधि सम्पत्ति पर प्रहार है। अकथित सम्पत्ति का सबसे सम्वेदनशील पहलू उसका जननी होना है जो अति आदृत भी है। वह सम्पत्ति निर्जीव नहीं, सजीव है। उसके साथ तमाम भावनायें भी जुड़ी हैं। पशुओं की तरह उसका व्यापार नहीं होता (मैं अपवादों की बात नहीं कर रहा)। चोट पहुँचाने के लिये इससे उपयुक्त क्या ‘चीज’ हो सकती है? 
चूँकि स्त्री समान रूप से सोचने समझने की और भावनामयी शक्तियाँ रखती है इसलिये उसे भी इस प्रहार से अपार चोट पहुँचती है। इसके कारण प्रहार का प्रभाव कई गुना हो जाता है। गाली देने में किसी तरह के शारीरिक उद्योग की भी आवश्यकता नहीं लिहाजा तत्काल निकल आती है, बाद में भले उसके कारण हत्या तक हो जाय!
हजारो वर्षों से हो रहे अनुबन्धन या अनुकूलन के कारण स्त्रियाँ भी वह गालियाँ देती हैं जो स्वयं स्त्री जाति के लिये अनादरसूचक और हिंस्र होती हैं। इसे पुरुष सत्ता का प्रभाव भी कहा जा सकता है और नौ महीने सबकी दृष्टि में गर्भ भार ढोने को लेकर अवचेतन में बैठे हीन भाव का प्रभाव भी। यौन सम्बन्धों के नियमन की प्रक्रिया में उन सम्बन्धों को गोपनीय, गुह्य, अवांछनीय और पापमूलक संज्ञायें दे दी गईं। पुरुष तो शुक्राणु देकर निश्चिंत हो जाता है लेकिन स्त्री उस ‘पापक्रिया’ के भार को तीन चौथाई वर्ष तक झेलती है और बाद में प्रसव प्रक्रिया को भी जो उसके यौनांग और पूरे शरीर को क्षत भी करती है। स्त्री ‘पापक्रिया’ की प्रत्यक्ष वाहिका होने के कारण पुरुष प्रधान समाज में घृणा का केन्द्र हो जाती है। सृष्टि चलती रहे इसके लिये गर्भ ढोना गर्भाधान से अधिक महत्त्वपूर्ण है। जो सृजन स्त्री को मातृत्त्व की गरिमा और आदर से अलंकृत करता है, वही उसके लिये घोर अनादर का कारण भी बन जाता है। इस अनादर के पीछे पुरुष अवचेतन का यह हीन भाव भी है कि स्त्री का दाय उस सृष्टि को जारी रखने में उससे बहुत अधिक है जिसका वह स्वामी बना बैठा है। सम्पत्ति न हो तो स्वामी कैसा? हीन भाव हिंसा को जन्म देता है। विवादों और असहमतियों की स्थिति में गालियाँ छिपे हुए इस हिंस्र भाव की अभिव्यक्ति हो जाती हैं।
गालियों से और भी पहलू जुड़े हैं। (अगला भाग) 
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लेंठड़े की पुरानी बातें: